Friday, November 27, 2015

१६. गोष्टी सांगणारा माणूस...

 
यह बाप हराम की कमाई नही लेता

एक मनसुखरायजी ने बडी मेहनत से अपना छोटासा कारोबार बनाया। खुद पढ़ सका इसलिये अपने बच्चे को, धनदीप को पढ़ा लिखाना उपना फर्ज समझा जब विदेश जाकर पढनेका वक़्त आया तब उन्होने अपना कारोबार बेचकर उसकी पढाई का खर्चा उठाया बच्चेको समाज में प्रतिष्ठा मिले यह देखना चाहते थे। आज धनदीप पढ़-लिख कर एक बड़ी कार्गो कंपनी का मालिक बन गया हैमगर यह कंपनी विदेश से एक्साइज, कस्टम ड्युटी चुकानी पड़े इसलिये नकली कचरा , स्क्रैप के रूप में  विदेश से माल ला रहा है। एक तरह की स्मगलिंग ही है यह। मगर धनदीप मानने को तैयार नही। उसका कहना है, आजकल सभी कारोबार ऐसे ही चलते है। पैसा आनेपर धनदीप प्रतिष्ठीत भी बन चुका है। उसे अपनी करतुत पर गर्व है। मनसुख भाई को जब अपने बच्चे की करतुत का पता चला है, उन्होने उसके पैसेसे मिले सुख, समाधान को स्वीकारने से मना किया है। वह एक विरक्त साधू की तरह ही उस घर में सिर्फ दो वक़्त आते है, सोने और खाने। अपना सारा समय उन्होने गरीबों की सेवा करनेवाले एक आश्रम के लिये दिया है। धनदीप और उनमें जराभी नही बनती। आज उअनके सामने एक बड़ा प्रश्न है, उनकी हार्ट का बायपास करना है जिस्के लिये तीन लाख रूपये चाहीए। मगर धनदीप की कमाई हराम की कमाई है। वह लेना नही चाहते।  आज डाक्टर की रीपोर्ट आनेपर धनदीप उन्हे अस्पताल में भर्ती होने की जिद कर र्हा है, मगर वह इस्के लिये तैयार नही है। उनका कहना है, की इस देश में लाखो लोग पैसे होने के कारण बगैर इलाज के ही मर जाते है, इसमें एक मैं बन जाऊँ तो भी क्या? दोनो का झगडा, धनदीप कहता है, गर मेरे पैसे से इअलाझ नही करवाना है, तो यह घर छोड दो! वर्ना लोग मुझपर थूकेंगे, बाप का इलाज करनेवाला जाहिल कहेंगे। झगडे में मनसुखभाई के सीने में दर्द शुरू होता है। मगर वह दीखाते नही। अपने आप को सम्हालते है, एक झोली उठाकर हमेशा के लिये आश्रम जाने के लिये निकलते है। जाते जाते वह धनदीप को जो सुनाते है वह अपने आप में एक मिसाल है।

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