पेबला घरसे बेदखल हो गया. पूरी छब्बीस साल की जिंदगी बेदखल
की गयी.
पेबला पैदा क्यूँ हुवा, खुद उसही को पता नहीं था। पेबले के पिता, चाचा, बड़े भैया काफ़ी पढ़े लिखे इन्सान थे।
इसलिए पेबला पढ़ें, ये कोई सरकारी कानून तो नहीं था ना? और गर-अगर होता, पेबला तुरंत वो कानून तोड़ देता.
पढना बस उस की औकात के बाहर था। वैसे कुछ काम करना भी नहीं था, तो औकात का तो सवाल ही नहीं!
घरवालों ने लाख कही, इसने एक न सुनी। जहाँ भी काम पे रखा, मालिक दो दिन में वापस कर देता.
एकदम डि...फेक्टिव पीस !! कोई पूँछे, "क्या हुवा?" तो जवाब आता,
"मालिक साला, कुछ काम का ही नहीं है। पूरा दिन बैठा रहता है! सब काम मुझसे ही करवाता है। नाइन्साफ़ी!!
पेबला पैदा क्यूँ हुवा, खुद उसही को पता नहीं था। पेबले के पिता, चाचा, बड़े भैया काफ़ी पढ़े लिखे इन्सान थे।
इसलिए पेबला पढ़ें, ये कोई सरकारी कानून तो नहीं था ना? और गर-अगर होता, पेबला तुरंत वो कानून तोड़ देता.
पढना बस उस की औकात के बाहर था। वैसे कुछ काम करना भी नहीं था, तो औकात का तो सवाल ही नहीं!
घरवालों ने लाख कही, इसने एक न सुनी। जहाँ भी काम पे रखा, मालिक दो दिन में वापस कर देता.
एकदम डि...फेक्टिव पीस !! कोई पूँछे, "क्या हुवा?" तो जवाब आता,
"मालिक साला, कुछ काम का ही नहीं है। पूरा दिन बैठा रहता है! सब काम मुझसे ही करवाता है। नाइन्साफ़ी!!
राजघरानेसे
तालुकात थे। पैदाइशी बाश्शा था, पेबला। सुबह नहा-धोकर चौरसिया के ठेले पे खैनी चबाने, पेबले की टोली
जमा रहती।
सब एक सो एक निकम्मे! घर सिर्फ दो टाइम खाना, दो टाइम सोना। बाकी दिन पेबले का एक ही काम था- कुछ न करना!
घरवालों ने समझा-धमकाया, नहीं माना. तो रोटी-सोटी बंद करी, पेबला परेशान। अब नहीं होगा भैया। कुछ जुगाड़ करना होगा।
घर से बेदखल हुवा, तो पेबलेने, अपने चचा के घर पनाह ली। आख़िर चचा के कदमों पर जो चलना था। दुनिया में जुगाड़ सचमुच बड़ी चीज़ है।
अच्छों अच्छों की सेट नहीं होती और पेबलों की निकल पड़ती है। चचा, बापजादोंकी हिस्से में मिली जायदाद-वायदाद सम्हाल रहा था।
मतलब लोग सम्हालते- फसल, गन्ना उगाते, बदले में पैसे चचा को देते. आखिर टाटा- अम्बानी भी क्या करते है?
तो चचा का काम था इन पैसों को खर्चना। खाना और पीना, मतलब चरस। बरसों चरस पीके चचा के हाथ- पैरों में जकड़न हुई थी।
तो पेबला, चचा की सेवा में लग गया। दो टाइम खाना- चाय-नाश्ता, हाटल से मँगवाना और रात चचा के हाथ पैरों की मालिश कर उनकी जकड़न खुलवाना। बाकी टाइम सिग्रेट में से तमाखू निकाल, उस मेँ चरस भरना। की दोनों खींचने में मगन। कुछ साल सेवा जारी रही।
चचा कुछ साल और जी लेता मग़र पेबले की सेवा ने उसके दिन जल्द भर दिये। मरने से पहले अपनी ज़ायदाद, पुरे डेढ़ कऱोड की, पेबले के नाम कर गए।
एकदम काम का बंदा बन गया पेबला. मतलब काम न करने का काम। मुफ़्त में मिले सारे पैसे कंही फूँक न डाले, इसलिए सम्मानतासे घर दाखिल कराया गया।
अब उस के लिए लडक़ी ढूँढना शुरू हुवा. घर के ही आगे एक दुकान खुलवा दी, की लगे बन्दा कुछ काम करता हैं।
सरायपुर से एक शास्त्री की पढ़ी लिखी खूबसूरत इकलौती बेटी का, दुकान के बदौलत, पेबले से ब्याह हुवा। कुछ दिन बीते..,
और पेबला फिर से चौरू के ठेले पे पूरा दिन। कुछ काम न करने की कसम जो खा रखी थी।
लोग दुकान की तरफ देखने भागे की, क्या बंद रखी है.... हैरान रह गये...
दुकान पे पेबली बैठी थी।
दुनिया में जुगाड़ सचमुच बड़ी चीज़ है। बड़ों बड़ों की सेट नहीं होती और पेबलों की निकल पड़ती है।
सब एक सो एक निकम्मे! घर सिर्फ दो टाइम खाना, दो टाइम सोना। बाकी दिन पेबले का एक ही काम था- कुछ न करना!
घरवालों ने समझा-धमकाया, नहीं माना. तो रोटी-सोटी बंद करी, पेबला परेशान। अब नहीं होगा भैया। कुछ जुगाड़ करना होगा।
घर से बेदखल हुवा, तो पेबलेने, अपने चचा के घर पनाह ली। आख़िर चचा के कदमों पर जो चलना था। दुनिया में जुगाड़ सचमुच बड़ी चीज़ है।
अच्छों अच्छों की सेट नहीं होती और पेबलों की निकल पड़ती है। चचा, बापजादोंकी हिस्से में मिली जायदाद-वायदाद सम्हाल रहा था।
मतलब लोग सम्हालते- फसल, गन्ना उगाते, बदले में पैसे चचा को देते. आखिर टाटा- अम्बानी भी क्या करते है?
तो चचा का काम था इन पैसों को खर्चना। खाना और पीना, मतलब चरस। बरसों चरस पीके चचा के हाथ- पैरों में जकड़न हुई थी।
तो पेबला, चचा की सेवा में लग गया। दो टाइम खाना- चाय-नाश्ता, हाटल से मँगवाना और रात चचा के हाथ पैरों की मालिश कर उनकी जकड़न खुलवाना। बाकी टाइम सिग्रेट में से तमाखू निकाल, उस मेँ चरस भरना। की दोनों खींचने में मगन। कुछ साल सेवा जारी रही।
चचा कुछ साल और जी लेता मग़र पेबले की सेवा ने उसके दिन जल्द भर दिये। मरने से पहले अपनी ज़ायदाद, पुरे डेढ़ कऱोड की, पेबले के नाम कर गए।
एकदम काम का बंदा बन गया पेबला. मतलब काम न करने का काम। मुफ़्त में मिले सारे पैसे कंही फूँक न डाले, इसलिए सम्मानतासे घर दाखिल कराया गया।
अब उस के लिए लडक़ी ढूँढना शुरू हुवा. घर के ही आगे एक दुकान खुलवा दी, की लगे बन्दा कुछ काम करता हैं।
सरायपुर से एक शास्त्री की पढ़ी लिखी खूबसूरत इकलौती बेटी का, दुकान के बदौलत, पेबले से ब्याह हुवा। कुछ दिन बीते..,
और पेबला फिर से चौरू के ठेले पे पूरा दिन। कुछ काम न करने की कसम जो खा रखी थी।
लोग दुकान की तरफ देखने भागे की, क्या बंद रखी है.... हैरान रह गये...
दुकान पे पेबली बैठी थी।
दुनिया में जुगाड़ सचमुच बड़ी चीज़ है। बड़ों बड़ों की सेट नहीं होती और पेबलों की निकल पड़ती है।
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